डॉ. रामचन्द्र सिंह जी – आपका असीम स्नेह और आशीर्वाद सदैव स्मरणीय है🙏🏻
जाने वाले कभी नहीं आते,
जाने वालों की याद आती है।
ये चंद लाइनें भी उस शख्सियत के आगे बौनी हो जाती है, जिसकी पहचान उसके कद से नहीं उसके काम से हो. हम बात डॉ.साहेब की कर रहे हैं जिनको पूरा पूर्वांचल इसी नाम से पुकारता था जबकि असल में उनका नाम डॉ. रामचंद्र सिंह था, भले ही डॉ.साहेब के जीवन का सफर आजमगढ़ के मेरूपुर गांव से शुरू हुआ लेकिन मऊ की धरती से उनका लगाव कुछ अलग ही था यही वजह है कि उन्होंने मऊ को ही अपना कर्मभूमि बनाया, और यहां जो विकास की गाथा उन्होंने लिखी उसे मऊ की जनता कभी भुला नहीं पाएगी…
डॉ.साहेब की प्रारम्भिक शिक्षा मऊ के जीवन राम इंटर कॉलेज से हुई इसके बाद उनके आदर्श रहे भदेसरा के बाबू हरीशंकर सिंह के निर्देशों पर वो आगे की पढ़ाई के लिए वो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी चले गएं और वहां से उन्होंने पहले बीएसी, एमएसी और फिर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की , पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद ही उन्हें नौकरी मिल गई, लेकिन डॉ. साहेब का मन नौकरी में नहीं लगता, उनके मन में मऊ मानो बस सा गया था, यही वजह थी कि उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया और मऊ के लोगों की सेवा करने का बीड़ा उठा लिया, और अपने इस फैसले के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा,
70 के दशक में जब मऊ की जनता रोजगार के लिए तरस रही थी, इसी दौरान डॉ. साहेब ने मऊ में यू॰पी॰हैंडलूम की स्थापना की और फिर एच .के. साइज़िंग के माध्यम से सैकड़ों लोगों को यहां रोज़गार मिला
जरूरतमंदों की मदद करना में वो कभी पीछे नहीं हटते थे, यही वजह थी कि वो कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े थे, रेड क्रॉस सोसायटी और मऊ रोटरी क्लब में उन्होंने दशकों तक अपना योगदान दिया.
भले ही डॉ॰ साहेब मऊ में रहते थे, लेकिन उनकी सियासी पकड़ राजधानी दिल्ली तक थी, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिह उनके अजीज थे, इतने अजीज की प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेहर सिंह उनके आमंत्रण पर मऊ भी पहुंचे थे,
जब-जब मऊ पर संकट के बादल छाये डॉ साहेब अपना पूरा योगदान दिया, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी डॉ साहेब ने मऊ दंगे में शांति व्यवस्था क़ायम करने में अग्रणी भूमिका निभायी थी, उन्होंने जनता से शांति कायम रखने की अपील की और उसका असर भी खूब हुआ,
डॉ. साहेब को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।